आओ फिर से दीया जलाएं… दीपावली पर क्यों याद आ रहीं Atal Bihari की कविताएं? Diwali 2023

Atal Bihari Vajpayee Poems: देश के पूर्व प्रधानमंत्री Atal Bihari Vajpayee  कविताएं गाहेबगाहे हमारी स्मृति में हैं, हम उन्हें कोई कोई वजह से याद कर ही लेते हैं। आज दीपवली के पावन अवसर पर उनकी दीपावली पर लिखी कविताएं खूब शेयर होती हैं।

 

आओ फिर से दीया जलाएं

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नई दिल्लीआज देशभर में दीपावली का त्योहार बड़े-बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा। लोग सुबह से ही इसकी तैयारी में लग गए हैं। कोई घर की सफाई में लगा है तो कोई घर को दुल्हन की तरह सजा रहा है। दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में पलूशन के चलते बंदिशों के बीच दिवाली मनाई जाएगी। रंगोली और जगमग रोशनी से घर तो सजेगा लेकिन पटाखे फोड़ने पर बैन होगा।

दीपावली की तैयारियों के बीच एक और चीज है जिसकी चर्चा सोशल मीडिया पर हो रही है। वह है देश के पूर्व प्रधानमंत्री Atal Bihari Vajpayee की कविताएं। कौन नहीं जानता कि एक प्रखर नेता और सबके श्रद्धेय Atal Bihari Vajpayee जी को कविताएं लिखना और उन्हें अपने अंदाज में सुनाना बहुत पसंद था। Atal Bihari Vajpayee की दिवाली पर लिखी कविताएं आज खूब शेयर हो रही हैं। इसलिए आज दीपोत्सव पर उनकी ओर से लिखी कविताओं पर डाल लीजिए एक नजर-

Atal Bihari आओ फिर से दीया जलाएं

आओ फिर से दीया जलाएं Atal Bihari की कविताएं

चमकाएँ चमक सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों
तन्हाई में भी मेले हों,
आनंद की आभा होती है
*उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है ।*

जब प्रेम के दीपक जलते हों
सपने जब सच में बदलते हों,
मन में हो मधुरता भावों की
जब लहके फ़सलें चावों की,
उत्साह की आभा होती है
*उस रोज़ दिवाली होती है ।*

जब प्रेम से मीत बुलाते हों
दुश्मन भी गले लगाते हों,
जब कहीं किसी से बैर न हो
सब अपने हों, कोई ग़ैर न हो,

अपनत्व की आभा होती है
*उस रोज़ दिवाली होती है ।*

जब तन-मन-जीवन सज जाएं
सद्भाव के बाजे बज जाएं,
महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की
मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
तृप्ति की आभा होती है
*उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है .*।

आओ फिर से दीया जलाएं

भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाईं से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ
आओ फिर से दीया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वर्तमान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ
आओ फिर से दीया जलाएँ

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा

अंतिम जय का वज्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ
आओ फिर से दीया जलाएँ

 

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